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मंगलवार, 10 नवंबर 2009

यादों के झरोखों से भाग ४ .............................

ज़िन्दगी यूँ ही अपनी रफ़्तार से चल रही थी और हमें भी चलने को मजबूर कर रही थी। आख़िर हमारी ही चुनी हुई तो ज़िन्दगी थी फिर उससे कैसे मुहँ मोड़ सकते थे हम।
एक दिन अचानक जब मैं काफ़ी शॉप में बैठी हुयी थी तभी देखा सामने वाली कुर्सी पर रवि आकर बैठा है। उसे देखते ही एक धक्का सा लगा दिल को । क्या हाल हो गया था रवि का । एक कंपनी का इतना उच्च पदाधिकारी और ये हाल -----------टूटा , बिखरा , बेतरतीब सा। देखने पर यूँ लगा जैसे बरसों से बीमार हो । एक हँसता मुस्कुराता चेहरा जैसे कुम्हला गया हो। उसे देखते ही दिल में संवेदनाएं जागने लगीं ............चाहे आज हम अलग हो गए थे मगर कभी तो हम साथ रहे थे इसलिए इंसानियत के नाते उठकर रवि के पास चली गई और अपने सामने अचानक मुझे देखकर वो हडबडा गया। फिर ख़ुद को संयत कर उसने मुझे बैठने को कहा। मैंने उससे पूछा ये क्या हाल बना रखा है तुमने, तो बोला किसके लिए कुछ करुँ। जैसा हूँ ठीक हूँ । एक धक्का सा लगा उसका जवाब सुनकर। एक अपराधबोध सा होने लगा जैसे उसकी गुनहगार मैं ही हूँ और साथ यूँ भी लगा कि जैसे आज भी वो मुझे उतना ही चाहता है। फिर वो बोला तुम्हारा हाल ही कौन सा मुझसे अलग है । कभी देखा है ख़ुद को आईने में । उस वक्त यूँ अहसास हुआ जैसे किसी ने जलते हुए छालों पर बर्फ का मरहम लगा दिया हो । बस उसके बाद अपने -अपने ख्यालों में गुम हम दोनों ही अपनी -अपनी राह पर चल दिए कुछ सवालों के साथ ।
घर आकर लगा जैसे कहीं कुछ अपनी बहुत ही खास चीज़ छूट गई है। उसे पकड़ने की इच्छा जागृत होने लगी। यूँ लगने लगा जैसे रवि एक बार आवाज़ दे तो .................. मगर सोचने से ही तो सब कुछ नही होता । उधर रवि का भी यही हाल था। उसे भी लगा कि कहीं कुछ ग़लत हो गया है जिसे शायद हम दोनों ही नही समझ पा रहे थे।

आज थोडी वक्त की कमी है इसलिए कहानी इतनी ही डाल पा रही हूँ क्षमाप्रार्थी हूँ ।

क्रमशः.................................

7 टिप्‍पणियां:

अजय कुमार ने कहा…

सुन्दर शब्दों में गुंथी हुयी भावनाएं

डॉ. महफूज़ अली (Dr. Mahfooz Ali) ने कहा…

मैंने उससे पूछा ये क्या हाल बना रखा है तुमने, तो बोला किसके लिए कुछ करुँ। जैसा हूँ ठीक हूँ । एक धक्का सा लगा उसका जवाब सुनकर। एक अपराधबोध सा होने लगा जैसे उसकी गुनहगार मैं ही हूँ और साथ यूँ भी लगा कि जैसे आज भी वो मुझे उतना ही चाहता है। yeh line padh kar rona sa aa gaya..... sach ! bahut hi bhaavuk pal hain yeh.....

mujhe jaise aage ka intezaar tha..... jaise hi computer khola..... saamne yeh kahani thi.... man khush hua....aur padh kar kaafi sentimental ho gaya hoon.....aur khud ko hi relate kar raha hoon..... aapki is kahani se....

yahi to art hai...... ki padhne wala khud ko jod le..... aapki likhi hui cheezon se.... main aapke is lekhan se bahut hi prabhaavit hoon..... aur aapki lekhni ko salute karta hoon.....

ab mujhe phir besabri se aage ka intezaar hai.....


Regards........

M VERMA ने कहा…

घर आकर लगा जैसे कहीं कुछ अपनी बहुत ही खास चीज़ छूट गई है। उसे पकड़ने की इच्छा जागृत होने लगी। यूँ लगने लगा जैसे रवि एक बार आवाज़ दे तो ..................
कितने करीबी शब्दो से भावनाओ को उजागर किया है
दास्तान एक रोचक मोड पर नज़र आ रही है

ओम आर्य ने कहा…

अगले अंक का इंतजार रहेगा!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

rochak hai ..... kahaani ki shuruaat lajawaab hai ...

डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक' ने कहा…

.................. मगर सोचने से ही तो सब कुछ नही होता । उधर रवि का भी यही हाल था। उसे भी लगा कि कहीं कुछ ग़लत हो गया है जिसे शायद हम दोनों ही नही समझ पा रहे थे।

बहुत सुन्दर!
दोनों तरफ है आग बराबर लगी हुई!

दिगम्बर नासवा ने कहा…

Ravi aur Nisha ki kahaani naya mod le rahi hai .....samvedna badhti jaa rahi hai ...